Babar Ali ,Youngest Principal of world in Hindi
मलाला यूसुफजई
“ एक किताब ,एक पेन,एक बच्चा और एक अध्यापक दुनिया बदल सकते हैं | ” आज भी देश में गरीबी की वजह से कई बच्चे अशिक्षित हैं और उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं | ऐसे कुछ बच्चो के लिए बाबर अली एक मसीहा बनकर निकले हैं | मात्र नौ साल की उम्र से गरीब बच्चों को पढ़ाने वाले बाबर अली दुनिया के सबसे कम उम्र के प्रिंसिपल हैं | बाबर अली कोलकाता से करीब 200 किलोमीटर दूर मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा शहर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते थे | किन्तु उस दौरान वो 5वी में थे , जब उन्होंने अपने घर के आँगन में गरीब बच्चो को पड़ना शुरू किया था | पर अब बाबर अली 25 साल के हो चुके है , और वह आँगन एक स्कूल में बदल गया हैं|
दोस्तों का कूड़ा उठाना नहीं हुआ बर्दाश्त-
जब उन्होंने देखा की उनके दोस्त कूड़ा-करकट चुनते हैं और मैं पढाई कर रहा हूँ |इसीलिए मैने उनसे बात करी और उनको अपने घर के आँगन में पढ़ने के लिए बुला लिया और उनको अपने साथ बैठाया , ताकि में उनको पढ़ना और लिखना सिखा सकूँ | बाबर अली खुद स्कूल में पढ़ते और बाद में घर आकर अपने साथियो को पढ़ते | ताकि उनके दोस्त भी अशिक्षित न रहें |
माता – पिता की मदद से चलाते आ रहें हैं स्कूल –
बाबर कहते हैं कि मुझे इस काम में मेरी माँ बानुआरा बीबी और पिता मोहम्मद नासुरिद्दीन से बहुत मदद मिली हैं | ,मेरी माँ आंगनबाड़ी कर्मचारी हैं | जबकि मेरे पिता जी जूठ के कारोबारी थे | वो आगे बताते हैं कि वह अपने परिवार और शिक्षकों की मदद से स्कूल चला रहे हैं | उन्ही की मदद से गरीब बच्चो को कपड़ो , किताबो ,और पढ़ने लिखने की अन्य सामाग्री उपलब्ध करवा पाता हूँ |
इतना आसान नहीं था ये सफर –
शुरुआत में तो में अपने दोस्तों के साथ सिर्फ पढाई का खेल खेलता था , लेकिन फिर मैने महसूस किया कि यह बच्चे तो कभी पढ़ना नहीं सीख सकेंगे अगर इन्हे ठीक से शिक्षा नहीं दी गयी | उन्हें पढ़ाना अब मेरा फ़र्ज़ बन गया था बाबर के इस कदम को देखते हुए आसपास के बच्चो को बाबर की बातो पर भरोसा होने लगा | जब वो स्कूल से वापस आते तो वे सारे भी उससे यह जानने के लिए इच्छुक रहते कि आज उसे क्या पढ़ाया गया और उसने क्या सीखा ? उसकी जिंदगी में ये प्रक्रिया सालो तक जारी रही | जब बाबर 16 साल के हुए , और हर दिन जब चार बजते ही वो स्कूल से अपने घर वापस आते थे और घर पर एक घंटी बजाते थे, जिसकी आवाज सुनकर गावं के आसपास के बच्चे पढ़ने के लिए बाबर के पास दौड़े चले आ जाते थे | ये बात गावं में फ़ैल चुकी थी | लेकिन पैसो की तंगी की वजह से बाबर बच्चो को वैसी शिक्षा नहीं दे पा रहे थे जैसी वह देना चाहते थे |फिर जो कदम उन्होंने उठाया वो अपने आप में सराहनीय की बात हैं | बच्चो को किताब दिलाने के लिए बाबर रद्दी की दुकानों के चक्कर काटता और किताबे ढूंढ़ता था | धीरे – धीरे बाबर का स्कूल बढ़ने लगा | अपनी पढ़ाई के साथ साथ वो पूरे दिल से अपना स्कूल चलते | इसके लिए उनके पिता भी राजी हो गए थे और बाबर के स्कूल के लिए 600 रुपये भी दान किया करते थे | इसके बाद बाबर ने अपने स्कूल का उद्घाटन किया जिसका नाम उन्होंने “ आनंद शिक्षा निकेतन रखा ” | आज बाबर का खुद का स्कूल हैं ,जिसमे 800 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं | ग्लोबल मीडिया में बाबर अली को दुनिया का सबसे जवान प्रिंसिपल से भी जाना जाता हैं |
अब मिल गई हैं प्राइवेट स्कूल की मान्यता-
बाबर अली को शिक्षकों के अलावा ,जिला अधिकारिओ से भी इस नेक काम के लिए सहयोग मिल रहा हैं | और अब इस संस्थान को वेस्ट बंगाल विद्धयालय शिक्षा विभाग से निजी स्कूल के तौर पर मान्यता भी मिल गयी हैं | साल 2002 से लेकर अब तक बाबर ने 5,000 से ज्यादा बच्चो को कक्षा एक से लेकर आठवीं तक पढ़ाया हैं , जिनमे कुछ बतौर शिक्षक वहां काम करने भी लगें हैं | बाबर अली के स्कूलों में फिलहाल 500 छात्र -छात्राएं और 10 शिक्षक हैं |
आज बाबर अली को दुनिया सलाम करती हैं –
बाबर अली को रियल हीरो अवार्ड से भी नवाजा गया हैं | अब बाबर बड़े हो चुके हैं | और दुनिया भर में इनकी चर्चा हैं | लोग इनका सम्मान करते हैं और ऐसे की कई नौजवानों की देश को जरुरत हैं जो इस देश की उन्नति के लिए कार्य करे | और एक लाइन है जो बाबर अली के लिए ही बनी हैं “ जिस स्कूल में तुम पढ़ते हो न हम उस स्कूल के हेडमास्टर हैं “ |
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