33. नील आर्मस्ट्रांग की जीवनी| Best Neil Armstrong Biography in Hindi.

नील आर्मस्ट्रांग की जीवनी| Best Neil Armstrong Biography in Hindi.

 

नील आर्मस्ट्रांग की जीवनी| Best Neil Armstrong Biography in Hindi.
Best Neil Armstrong Biography in Hindi.

चाँद पर पहली बार कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग का जन्म 5 अगस्त,1930 ई० को ओहायो के वेपकॉनेटा नामक शहर में हुआ था|

इनका पूरा नाम नील एल्डन आर्मस्ट्रांग हैं और यह एक अमेरिकी खगोलयात्री हैं| नील आर्मस्ट्रांग एक एयरोस्पेस इंजीनियर,  नौसेना अधिकारी, परीक्षण पायलट, और प्रोफेसर भी थे|

तो आइये दोस्तों पढ़ते हैं- नील आर्मस्ट्रांग की जीवनी| Best Neil Armstrong Biography in Hindi.

नील आर्मस्ट्रांग खगोलयात्री (एस्ट्रोनॉट) बनने से पहले वे नौसेना में काम किया करते थे| उन्होंने नौसेना की तरफ से काम करने से हुए कोरिया युद्ध में भी हिस्सा लिया था|

नील आर्मस्ट्रांग ने नौसेना के पुरुडु विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की थी और उसके पश्चात् वह एक ड्राईडेन फ्लाइट रिसर्च से जुड़ गए थे,और एक परीक्षण में 900 से अधिक उड़ानें भी भरी|

इन सभी जगहों पर अनुभव लेने के बाद उन्होंने दक्षिण कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय से परास्नातक की उपाधि प्राप्त की| 

नील आर्मस्ट्रांग चाँद पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति के नाम से मशहूर हैं| यह चाँद पर पहली अपोलो अभियान के खगोलयात्री के रूप में गए थे|

नील आर्मस्टांग ने जैमिनी अभियान के दौरान भी अंतरिक्ष की यात्रा की थी|

जुलाई 1969 में नील आर्मस्टांग पहले ऐसे कमांडर और व्यक्ति हैं जिसने  अपोलो 11 के अभियान के दौरान पहली बार चाँद के साथ कोई यान उतरा था| नील आर्मस्ट्रांग के बाद चाँद पर उतरने वाले बज़ एल्डिन दूसरे व्यक्ति बन गए|

इनके अलावा माइकल कॉलिंस एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने चाँद के कक्षा में चक्कर लगाते मुख्य यान में बैठे रहे और शामिल रहे| नील आर्मस्ट्रांग को अपने साथियों के साथ इस बहुत ही शानदार उपलब्धि के लिए  राष्ट्रीय निक्सन द्वारा प्रेसिडेंसियल मैडल ऑफ़ फ्रीडम पुरुष्कार से नवाज़ा गया|

इसके अलावा नील आर्मस्ट्रांग को सन् 1978 ई० में राष्ट्रपति जिमि कार्टर ने कांग्रेशनल स्पेस मैडल ऑफ़ ऑनर प्रदान किया गया और सबसे अच्छी बात नील आर्मस्ट्रांग और उसके साथियों को साल 2009 में कांग्रेशनल गोल्ड मैडल से भी सम्मानित किया गया|

तत्पश्चात् साल 2012 में सिनसिनाती के ओहायो में 27 अगस्त,2012  को 82 वर्ष की कुशल उम्र में दुर्भाग्यवश बाईपास सर्जरी के पश्चात नील आर्मस्ट्रांग की मृत्यु हो गयी और वो स्वर्ग सिधार गए| 

नील आर्मस्ट्रांग का प्रारम्भिक जीवन-   

नील आर्मस्ट्रांग जन्म वेपकॉनेटा के ओहायो नामक शहर में 5 अगस्त,1930 ई० को हुआ था| इनकी माताजी का नाम वायला लुई एंजेल हैं और पिताजी का नाम स्टीफ़ेन आर्मस्ट्रांग हैं|

इनके दो छोटे भाई भी हैं जिनका नाम जून आर्मस्ट्रांग और डीन आर्मस्ट्रांग हैं| नील आर्मस्ट्रांग के पिताजी स्टीफन आर्मस्ट्रांग एक ऑडिटर थे और इनके पिताजी सरकार लिए भी काम किया करते थे| इसी कारण से इनका परिवार ओहायो के कई देश में भ्रमण करता रहा|

कहा जाता हैं कि परिवार नील आर्मस्ट्रांग के जन्म के पश्चात् कुल 20 देशों में भ्रमण कर चुके थे| इसी दौरान नील आर्मस्ट्रांग की रूचि हवाई उड़ानों में हो गई|

नील आर्मस्ट्रांग जब पाँच साल के हुए उनके पिता उन्हें लेकर 20 जून,1936 को ओहायो के वारेन नामक स्थान पर एक फोर्ड ट्राइमोटर हवाई जहाज में सवार हुए और यह नील आर्मस्ट्रांग की पहला हवाई उड़ान का अनुभव किया|

अंत में इनके पिताजी का स्थानांतरण 1944 ई० में पुनः उसी वेपकानेटा कसबे में हुआ, जहाँ पर नील आर्मस्ट्रांग का जन्म हुआ था| नील आर्मस्ट्रांग ने शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल जाना शुरू किया और उड़ान के पहले पाठ वेपकानेटा ग्रासी एयरफील्ड पर लेना आरम्भ किया|

नील आर्मस्ट्रांग ने अपने 16 वें जन्मदिन पर स्टूडेंट फ्लाइट सर्टिफिकेट हासिल किया और उसी वर्ष अगस्त में अपनी एक उड़ान भरी, यह तब जब अभी उनके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था|

वर्ष 1948 ई० में सत्रह वर्ष में नील आर्मस्ट्रांग ने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढाई शुरू की| वे किसी  कॉलेज स्तर की शिक्षा प्राप्त करने वाले दूसरे अपने घर के सदस्य थे|

26 जनवरी, 1949 को नील आर्मस्ट्रांग को नौसेना से एक सन्देश आया और फिर नील आर्मस्ट्रांग ने पेंसाकोला नेवी एयर स्टेशन में 18 महीनें के पर्याप्त समय तक ट्रेनिंग ली|

जब वह 20 वर्ष के हो गए तो नील आर्मस्ट्रांग को नेवल एविएटर यानी नौसेना पायलट का दर्जा मिल गया| नील आर्मस्ट्रांग ने पहली तैनाती एक नौसेना उड़ान कर्ता के रूप में एयरक्राफ्ट सर्विस स्क्वार्डन 7 में सान डियागो में हुई|   

एक स्पेस यात्री होने के साथ – साथ नील आर्मस्ट्रांग एरोस्पेस इंजीनियरिंग, टेस्ट पायलट, नौसेना विमान चालाक और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी रहे|

चाँद मिशन से पूर्व नील आर्मस्ट्रांग नेवी ऑफिसर के रूप में काम किया और अपने देश की सेवा की| नील आर्मस्ट्रांग ने कोरिया युद्ध में सक्रिय भूमिका भी अदा की|

कोरियाई युद्ध के दौरान नील आर्मस्ट्रांग को उड़ान को पहला अवसर मिला जब 29 अगस्त,1951 को इन्होंने इसमें उड़ान भरी| पांच दिन बाद इन्होंने 3 सितम्बर को नील आर्मस्ट्रांग ने पहली सशस्त्र उड़ान भरी|

नील आर्मस्ट्रांग ने कोरिया युद्ध में 78 मिशनों के दौरान उड़ान भरी और 121 घंटे हवाई उड़ान करते रहे| इस युद्ध के दौरान इन्हें पहले 20 मिशनों के लिए एयर मेडल और इसके अगली 20 मिशनों के लिए गोल्ड स्टार और कोरियन सर्विस मेडल भी मिला| 

नील आर्मस्ट्रांग के 22 साल की उम्र में नौसेना छोड़ी और संयुक्त राज्य नौसेना रिज़र्व में 23 अगस्त, 1952 को लेफ्टिनेंट (जूनियर ग्रेड) बने|

नील आर्मस्ट्रांग ने वहां पर 8 साल तक उन्हें सेवाएँ दी और अक्टूबर 1960 में यहाँ से सेवानिवृत्त हुए|

नौसेना के बाद नील आर्मस्ट्रांग- 

नौसेना से लौटकर उन्होंने वापस पुरुडु यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई जारी रखी और सन् 1955 में उन्हें ऐरोनोटिकल इंजीनियरिंग में बी० एस० की उपाधि मिली|

जब वह अपने कॉलेज के समय में होम इकोनॉमिक्स की शिक्षा ले रहे थे तब उनकी मुलाकात एलिज़ाबेथ शेरॉन से हुई| 26 जनवरी,1956 को इन्होंने एक-दूसरे को विवाह के बंधन से बाँध लिए|

शेरॉन अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सकी जिसके कारण उन्हें इसका बहुत दुःख हुआ|

इनकी तीन संतानें हुए जिनका नाम इन्होंने एरिक, करेन और मार्क रखा| इनकी एक बेटी करेन को ट्यूमर का रोग है, जिसका पता इन्हें सन् 1961 ई० में पता चला और इसके कारण ख़राब सेहत के कारण जनवरी 1962 ई० में उनकी नुमोनिआ के कारण मौत हो गई

बाद में 1970 ई० में नील आर्मस्ट्रांग ने अपनी परास्नातक उपाधि साउथ कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में ग्रहण की|

आगे चल कर उन्हें कई विश्वविद्यालयों ने मानद डाक्टरे की कई डिग्रीयाँ दी|

 नील आर्मस्ट्रांग का  खगोलयात्री करियर-

सन् 1958 ई० में  नील आर्मस्ट्रांग को अमेरिकी एयर फाॅर्स की ओर से मेन इन स्पेस सूनसेट प्रोग्राम के लिए चुने गए|

इसके बाद उन्हें 1960 ई० के नवंबर के महीने में एक्स 20 डायनासौर के टेस्ट पायलट के रूप में और बाद में 1962 में उन सात पायलटों में चुने गए जिनके अंतरिक्ष यात्रा की सम्भावना थी जब इस यान की डिज़ाइन पूरी हो जाए|

जेमिनी-8

20 सितम्बर, 1965 को नील आर्मस्ट्रांग को जेमिनी-8 का कमांड पायलट और डेविड स्कॉट को इसका पायलट घोषित किया गया|

13 मार्च, 1966 ई० को यह मिशन लांच किया गया| यह उस समय का सबसे जटिल था जिसमे एक मानव रहित यान एजेना पहले और फिर टाइटन 2nd छोड़ा जाता  था|

जिसमे नील आर्मस्ट्रांग और डेविड स्कॉट शामिल थे, उससे इसे अंतरिक्ष में जोड़ा जाना था| कक्षा में पहुंचने के लगभग छह घंटे बाद इन दोनों यानों को जोड़ा गया था|

इन्हें जोड़ने के समय कुछ तकनीकी समस्याएं भी आयी और इस समस्या से निपटने के लिए नील आर्मस्ट्रांग के निर्णय की आलोचना भी की गयी थी| 

बाद में (जेन क्रोंज) ने लिखा की चालक दल ने वैसा ही किया जैसा की उन्हें प्रशिक्षण दिया गया था| उन्होंने गलती की क्योंकि हम नें गलत प्रशिक्षण दिया था|

अभियान को प्लान करने वालों ने यह मूलभूत बात नहीं सोची थी कि जब दो यान एक-दूसरें से जुड़ेंगे तो उन्हें उसके बाद एक यान मानकर चलना पड़ेगा|

नील आर्मस्ट्रांग खुद भी इस कारण अवसादग्रस्त हुए, क्योंकि अभियान की अवधि को छोटा कर दिया था और इसके ज्यादातर लक्ष्यों को निरस्त कर दिया गया था|

जेमिनी-11

नील आर्मस्ट्रांग की जेमिनी प्रोग्राम में आखिरी भूमिका जेमिनी 11 के बैकअप-कमांड पायलट की रही| इस बात की घोषणा जेमिनी 8 के वापस लौट के आने के दो दिन बाद ही कर दी गयी थी|

नील आर्मस्ट्रांग इस बार अपने दो सफल अभियानों के कारण काफी हद तक एक सिखाने वाले की भूमिका में थे|

इस जेमिनी-11 प्रोग्राम को 12 सितम्बर,1966 को लांच किया गया| डीक गार्डन और पीक कोनराड इस यान में सवार थे| इसमें नील आर्मस्ट्रांग ने अपनी भूमिका कैप्सूल कम्यूनिकेटर के रूप में की|

यह अभियान अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने सफल रहा| इसकी सफलता के बाद राष्ट्रपति जॉनसन ने नील आर्मस्ट्रांग को और उनकी पत्नी को दक्षिण अमेरिका की एक गुडविल यात्रा पर भेजा| एक अन्य यात्रा में नील आर्मस्ट्रांग, डीक गार्डन और जॉर्ज लॉ तीनों ने सपत्नीक 11 देशों में 14 प्रमुख शहरों की यात्राएँ की|

नील आर्मस्ट्रांग का अप्पोलो प्रोग्राम-

अप्पोलो-11  

नील आर्मस्ट्रांग ने अप्पोलो-8 में भी काम किया था और इसके बाद इन्हें अप्पोलो-11 का कमांडर बनाने की खबर 23 दिसंबर, 1968 को मिला|

योजना के अनुसार नील आर्मस्ट्रांग को कमांडर का उत्तरदायित्व निभाना था| लूनर मॉड्यूल का पायलट बज़ एल्ड्रिन को और कमांड मॉड्यूल का पायलट माइकल कॉलिंस को होना था|

मार्च 1969 में हुई एक मीटिंग में यह घोषित किया गया की नील आर्मस्ट्रांग चाँद पर उतरने वाले पहले व्यक्ति होंगे|

इस निर्णय में कुछ भूमिका इस बात की थी की नासा प्रबंधन का यह मानना था कि नील आर्मस्ट्रांग एक शांत स्वभाव के व्यक्ति हैं|

14 अप्रैल,1969 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बाए गए कि लूनर मॉड्यूल का डिज़ाइन ऐसा था की इसका दरवाजा अंदर दाहिने दिशा की तरफ खुलना था और इसके कारण दाहिने तरफ बैठे पायलट को पहले उतरना मुश्किल था|

यह भी कहा गया हैं कि प्रोटोकॉल के मुताबिक नील आर्मस्ट्रांग जो कि इस अभियान के घोषित कमांडर थे, उन्हें पहले उतरने का मौका दिया जाए|

नील आर्मस्ट्रांग की चाँद की यात्रा-

अप्पोलो-11 के लांच के दौरान नील आर्मस्ट्रांग की हृदयगति 190 स्पंदन प्रति मिनट तक पहुँच गयी थी| नील आर्मस्ट्रांग को इसका पहला चरण सबसे अधिक शोर भरा प्रतीत हुआ, उनका पिछले जेमिनी-8 टाइटन, लांच से काफी ज्यादा|

अपोलो का कमांड मॉडयूल अवश्य ही जेमिनी की तुलना में अधिक स्थान वाला था| संभवतः यही कारण था कि अधिक जगह होने के कारण इसके यात्रियों को स्पेस सिकनेस का सामना नहीं करना पड़ेगा|

अप्पोलो-11 का लक्ष्य किसी विशिष्ट स्थान पर सटीकता के साथ उतरना नहीं बल्कि सुरक्षित उतरना था| चाँद पर उतरते समय तीन मिनट की समयावाशी के बाद नील आर्मस्ट्रांग ने महसूस किया कि उनकी गति योजना से कुछ सेकंड ज्यादा हैं और ईगल शायद प्लान के मुताबिक चुने स्थल पर कई मील दूर जाकर रुकेगा|

जब ईगल के लैंडिंग रडार ने सतह के आंकड़ों को प्राप्त किया तो कुछ कंप्यूटर त्रुटि चेतावनियाँ भी सामने आयी| पहली चेतावनी त्रुटि 1202 के रूप में आयी, और अपने विस्तृत प्रशिक्षण एक बावजूद एल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रांग दोनों में से किसी को भी नहीं पता था कि इसका क्या मतलब क्या हैं?

उन्हें तुरंत ही कैप्सूल कम्यूनिकेटर चार्ल्स ड्यूक से सन्देश मिला कि यह त्रुटि चेतावनियाँ कोई भी चिंता का विषय नहीं हैं और वह कंप्यूटर ओवरफ्लो के कारण हैं|

जब नील आर्मस्ट्रांग ने यह लक्षित किया कि वह सुरक्षित लैंडिंग के क्षेत्र से बाहर जा रहे हैं, उन्होंने लूनर मॉड्यूल का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया और इसे सुरक्षित उतारने की जगह ढूंढ़ने का प्रयास किया| इस कार्य में कुछ अधिक समय लगने  की सम्भावना थी और यह चिंता का विषय भी हैं|

क्योंकि इससे लूनर मॉड्यूल के ईंधन चूक जाने की आशंका थी| लैंडिंग के बाद एल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रांग को लगा की उनके पास 40 सेकंड का ईंधन मौजूद हैं जिसमे वह 20 सेकंड का ईंधन भी मौजूद था, जिसे मिशन के निरस्त करने की दशा में बचाना था|

मिसिन की समाप्ति के बाद के विश्लेषणों में पाया गया कि 45 से 50 सेकंड के नोदन हेतु ईंधन बचा था| चाँद की सतह पर लैंडिंग 20:17:50 यू टी सी के कुछ सैकङों के बाद 20 जुलाई, 1969 को हुई|

जब लूनर मॉड्यूल के चार पैरों में तीन के साथ जुड़े तीन लम्बें प्रॉब्स में से एक चन्द्रमा की सतह के संपर्क में आया और लूनर मॉड्यूल के अंदर सूचक लाइट जल गयी और एल्ड्रिन ने घोषणा की  “कांटेक्ट लाइट”|

नील आर्मस्ट्रांग ने इंजन बंद करने का निर्देश दिया और कुछ सेकंडों की लैंडिंग प्रणाली की जाँच के उपरांत आर्मस्ट्रांग ने घोषणा की “हॉस्टन ट्रांकिलिटी बेस हियर|

दि ईगल हैस लैंडेड|” एल्ड्रीन और आर्मस्ट्रांग ने एक दूसरे से हाथ मिलाया और एक दूसरे की पीठ थपथपाई| कुछ समय बाद जमीनी संपर्क स्थल से ड्यूक ने सन्देश प्राप्ति कन्फर्म की| 

नील आर्मस्ट्रांग की मून वॉक- 

नासा के अधिकारक प्लान के मुताबिक चालक दल को चन्द्रमा पर उतरने के बाद एक्स्ट्रा व्हीक्युलर एक्टिविटी के पूर्व कुछ देर आराम करना था|

नील आर्मस्ट्रांग को इस कार्य जल्दी करने की जिद थी| एक बार जब एल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रांग बाहर जाने के लिए तैयार हो चुके, ईगलवायुदाब मुक्त किया गया और दरवाजे को खोला गया|

नील आर्मस्ट्रांग सीढ़ी पर उतरे| सीढ़ी पर नीचे उतारकर नील आर्मस्ट्रांग ने कहा अब में एल ई एम से नीचे उतरने वाला हूँ| (अप्पोलो लूनर मॉड्यूल)| इसके बाद वह मुड़े और अपना बाँया पैर चाँद की सतह पर 2:56 यूटीसी जुलाई 29, 1969 ई० को रखा और ये प्रसिद्ध शब्द कहे “दैट्स वन स्माल स्टेप ऑफ़ [अ] मैन, वन जायंट लीप फॉर मैनकाइंड”|

जब नील आर्मस्ट्रांग ने यह घोषणा की तो “वौइस् ऑफ़ अमेरिका” द्वारा इस क्षण का प्रसारण किया गया और इस प्रसारण को बीबीसी एवं अन्य प्रमुख स्टेशनों द्वारा पूरी दुनिया भर में प्रसारित किया गया| एक अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया के लगभग 45 लाख श्रोतागण, रेडियो के द्वारा इस क्षण के साक्षी बने|

चाँद पर कदम रखने के लगभग 20 मिनट बाद, एल्ड्रिन उतरे और चाँद पर कदम रखने वाले दूसरें आदमी बने| इसके बाद दोनों ने चन्द्रमा की सतह पर कदम रख भ्रमण किया|

उन्होंने चाँद पर अपने राष्ट्रीय अमेरिकी झंडा फहराया और लगाया| झंडे को खुला रखने के लिए इसके डंडे के साथ एक धात्विक रॉड लगी हुई थी और पैकिंग में कसे इस झंडे के खुलने के बाद वह लहरदार हल्का प्रतीत हुआ मानो वहाँ मंद हवा सी चल रही हो|

कुछ ही देर के बाद राष्ट्रपति निक्सन ने अपने दफ्तर से टेलीफोन से इन खगोलयात्रियों से बात की| वैज्ञानिक परीक्षण पॅकेज को स्थापित करने के बाद नील आर्मस्ट्रांग चहलकदमी करते हुए वहाँ गए, जिसको अब पूर्वी क्रेटर कहा जाता हैं|

नील आर्मस्ट्रांग लूनर मॉड्यूल से लगभग 65 गज  पूर्व तक गए थे| वाहन से बाहर की कार्यवाही में लगा कुल समय लगभग ढाई घंटे था| 

साल 2010 के दिए गये एक इंटरव्यू में नील आर्मस्ट्रांग ने बताया कि नासा से इस अवधि को केवल ढाई                

घंटे का रखा क्योंकि वे लोग इस बारे में संशय में थे कि चाँद के अत्यधिक तप वाले परिवेष में स्पेसशूट कैसे व्यवहार करे?

नील आर्मस्ट्रांग के धरती पर लौटने के पश्चात्-

जब नील आर्मस्ट्रांग और लूनर मॉड्यूल धरती पर वापस आए, दरवाजा बंद और सील किया गया| कमांड मॉड्यूल कोलंबिया तक पहुँचने के लिये ऊपर उठने की तैयारी के दौरान उन्होंने पाया कि इनके इंजन को चालू करने का बटन ही टूट चुका हैं|

कलम के एक हिस्से के द्वारा उन्होंने सर्किट ब्रेकर को ठेल कर लोंच श्रृंखला चालू की| इसके साथ लूनर मॉड्यूल ने अपनी  उड़ान भरी और कोलंबिया के साथ जुड़ गया|

तीनों अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर वापस आए और प्रशांत महासागर में गिरे जहाँ से उन्हें यू.एस.एस होर्नेट नामक जल -यान से उठाया गया| 18 दिनों तक इन यात्रियों को संगरोधन में रखा गया ताकि यह परीक्षण हो सके कि कहीं उन्होंने चंद्रमा से कोई बीमारी तथा कोई इन्फेक्शन तो नहीं हुआ| 

नील आर्मस्ट्रांग का बाकी का जीवन-          

अप्पोलो-11 के बाद नील आर्मस्ट्रांग ने घोषणा की कि वह फिर कभी अंतरिक्ष यात्रा पर नहीं जाना चाहते| सन् 1971 में नील आर्मस्ट्रांग को नासा से पूरी तरह से सेवा निवृत्ति मिली|

नील आर्मस्ट्रांग ने सिनसिनाटी विश्वविद्यालय से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग पढ़ने का जिम्मा सँभाला| यहाँ उन्होंने 8 वर्ष पढ़ाने का कार्य किया था|

बाद के कुछ नासा के अभियानों में नील आर्मस्ट्रांग के विफल रहने और दुर्घटनाग्रस्त यानों की जाँच करने  वालों के दल के सदस्य भी रहे| साल 1986 ई० में प्रेजिडेंट रीगन ने नील आर्मस्ट्रांग को रोजर्स कमीशन के रूप में नियुक्त किया था|

जिसका कार्य चैलेंजर स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों को जांच करना था| नील आर्मस्ट्रांग ने कई कम्पनियों में प्रवक्ता के रूप में कार्य किया|

नील आर्मस्ट्रांग कई कंपनियों के निर्देशक मंडल भी रहे| साल 1987 में नील आर्मस्ट्रांग, एडमंड हिलेरी और कुछ अन्य महत्वपूर्ण खोजी यात्रियों के साथ उत्तरी ध्रुव की यात्रा पर भी  गए|

नील आर्मस्ट्रांग का कहना था कि वह इस बात को जानना चाहते थे कि उत्तरी ध्रुव जमीन पर कैसा दिखता हैं क्योंकि नील आर्मस्ट्रांग ने उसे केवल अंतरिक्ष से देखा था|

नील आर्मस्ट्रांग की मृत्यु-

7 अगस्त 2012 को बीमारी के कारण नील आर्मस्ट्रांग हृदय की बीमारी के कारण बाईपास सर्जरी कराने पड़ी| रिपोर्ट के अनुसार  वह धीरे – धीरे सही हो रहे थे|

परन्तु अचानक फिर कुछ जटिलतायें उत्पन्न और 25 अगस्त,2012 की तारीख को नील आर्मस्ट्रांग का सिनसिहाती,  ओहायो में निधन हो गया और इस महान खगोलयात्री का जीवन समाप्त हो गया परन्तु हमारे आगे के समय के लिए सफलता के लिए सीख लेने का उदाहरण बन  गया|

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